28 जुलाई को राजस्थान के बाड़मेर जिले में भारतीय वायुसेना के मिग-21 बाइसन विमान दुर्घटनाग्रस्त हो जाने के बाद सेना ने आगामी 30 सितंबर तक अपनी 51 स्क्वॉर्डन (51 Squadron) को रिटायर करने का फैसला लिया है। मिग-21 से जुड़ी वायु सेना की तीन अन्य स्क्वॉर्डन भी 2025 तक रिटायर कर दी जाएंगी.
28 जुलाई रात 9:10 बजे बाड़मेर के बायतु थाना क्षेत्र के भीमड़ा गांव में भारतीय वायुसेना का मिग-21 दुर्घटनाग्रस्त हो गया। इस हादसे में वायुसेना के दो पायलट विंग कमांडर मोहित राणा और फ्लाइट लेफ्टिनेंट अद्वितीय बल शहीद हो गए।
विमान ने उत्तरलाई एयर फोर्स स्टेशन उड़ान भरी थी, जो रास्ते में क्रैश हो गया। वायुसेना ने हादसे की जांच के लिए कोर्ट ऑफ इंक्वायरी के आदेश जारी कर दिए हैं।
इस मिग क्रैश ने एक एक बार फिर नए सिरे से उन सवालों को ताजा कर दिया है जो पिछले 20 महीनों में हुए पांच मिग विमानों के दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद बार-बार उठे हैं। कि आखिर 'फ्लाइंग कॉफिन' (उड़ता ताबूत) बन चुके मिग विमानों का भारतीय वायुसेना कब तक प्रयोग लेती रहेगी? और कब तक इसी तरह जांबाज पायलटों की जाने जाती रहेंगी?
आसमान में उड़ता फ्लाइंग कॉफिन
पिछले साल 17 मार्च को ग्वालियर में कैप्टन आशीष गुप्ता, 20 मई को पंजाब के मूंगा में स्क्वॉर्डन लीडर अभिनव चौधरी, 24 दिसंबर को विंग कमांडर हर्षित गुप्ता और अब 28 जुलाई को 2 और पायलटों की जान इस लड़ाकू विमान के कारण चली गई।
कभी भारतीय वायु सेना की मजबूत ताकत माने जाने वाले मिग पिछले 5 दशकों में 400 दफा हादसे का शिकार बन चुके हैं। जिस कारण वायुसेना के 200 पायलटों और करीब 50 सिविलियंस को अपनी जान गंवानी पड़ी हैं। साल 2012 में तत्कालीन रक्षा मंत्री ए.के एंटनी ने संसद में बताया था कि मिग हादसों में अब तक 171 पायलटों, 39 सिविलियंस और 8 अन्य लोगों की जानें जा चुकी हैं। यही कारण है कि मिग विमानों को अब फ्लाइंग कॉफिन यानी उड़ता ताबूत और विडो मेकर (widow maker) नामो से जाना जाने लगा हैं।
क्या है मिग की ताकत
मिग विमानों का निर्माण वर्ष 1955 में रूसी कंपनी मिकोयान (Mikoyan-Gurevich Design Bureau) द्वारा किया गया था। यह पहला सुपरसोनिक फाइटर जेट विमान था। वर्ष 1963 में भारतीय वायु सेना ने 874 मिग-21 विमानों को अपने बेड़े में शामिल किया। वर्तमान में इसके अपग्रेडेड वर्जन मिग-21 बाइसन हमारी सेना का हिस्सा है। जिसे हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) लाइसेंस के तहत अपग्रेड करता है।
इस विमान ने 1971 और 1999 कारगिल की लड़ाई में भारतीय वायुसेना का भरपूर साथ दिया है। 2019 में भारत द्वारा पाकिस्तान के कई आतंकी ठिकानों पर की गई एयर स्ट्राइक में भी मिग विमान चर्चा में आया था। जब विंग कमांडर अभिनंदन ने मिग विमान से अपने कई गुना आधुनिक पाकिस्तान के F-19 फाइटर जेट को ध्वस्त कर दिया था।
अभी तक रिटायर क्यों नहीं हुए मिग
1963 से भारतीय वायुसेना की ताकत कहे जाने वाले मिग विमानों को बनाने वाले रूसी कंपनी ने 1985 में हो इसका निर्माण बंद कर दिया था। और इसके साथ ही रूसी वायुसेना ने इसको रिटायर कर दिया था। यह विमान विश्व के 60 से अधिक देशों की वायु सेनाओं का हिस्सा रहा है, पर अधिकतर ने सालों पहले इसका प्रयोग बंद कर दिया है।
पर भारत छह दशक बाद भी मिग को रिटायर नहीं कर पाया है। भारत के सामने ऐसा करने के पीछे कई वजह हैं, जैसे स्क्वाड्रन की कमी। वायुसेना की एक स्क्वाड्रन में 16-18 लड़ाकू विमान होते हैं। सुरक्षा की दृष्टि से वर्तमान में भारतीय वायुसेना को 42 स्क्वाड्रन की जरूरत है। पर वायुसेना के पास 32-33 स्क्वाड्रन ही मौजूद है। अगर ऐसे में मिग-21 के चारों स्क्वाड्रन को एक साथ हटा दिया गया तो 30 से भी कम स्क्वाड्रन बचेंगी। भारत के ही बने तेजस फाइटर जेट प्रोजेक्ट और फ्रांस से हुए राफेल विमान सौदे में हुई देरी के कारण भी मिग-21 को अपग्रेड करके वायुसेना का हिस्सा बनाए रखना पड़ा है।
कौन लेगा इनकी जगह
भारतीय वायुसेना ने 30 सितंबर तक अपनी श्रीनगर बेस्ड 51-स्क्वॉर्डन (51-Squadron) को रिटायर करने का फैसला किया है। मिग-21 से जुड़ी वायुसेना की तीन अन्य स्क्वॉर्डन भी 2025 तक रिटायर कर दी जाएंगी। ऐसे में देश में ही बने काम वजन वाले फाइटर जेट तेजस अब मिग की जगह लेंगे। इन्हे भारत की हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) द्वारा बनाया है।
साथ ही पांचवीं पीठी के आधुनिक फाइटर जेट एएमसीए (AMCA- Advanced Medium Combat Aircraft) का भी एचएएल निर्माण कर रहा है। सुखोई 30 विमान भी वायुसेना के समाने मिग का एक बेहतर विकल्प हैं। वायुसेना मिग के बाद समान वाहक विमान जगुवार और मिराज-2000 को भी रिटायर करने की योजना बना रही है। इस जगह को भरने के लिए भारत कई बड़े विमान सौदे करने की तैयारी में है। हालांकि इसके बाद भी भारतीय वायुसेना के जत्थे में 42 सक्रिय स्क्वॉर्डन खड़ी करना अभी एक चुनौतीपूर्ण कार्य रहेगा।
-शक्ति प्रताप सिंह
Write a comment ...