दुनियाभर के अन्तराष्ट्रीय एयरपोर्ट एक बार फिर सख्ती के घेरे में हैं। दक्षिण अफ्रीका और बोत्सवाना से शुरू हुए कोरोना के नए वेरिएंट ‘ओमिक्रोन’ ने सबकी की चिंता बढ़ा दी है। यदि इसे समय पर गंभीरता से नहीं लिया गया तो यह कितना घातक साबित होगा, यह सब पिछली कोरोना की लहरों में देख चुके हैं। नया वेरिएंट ‘ओमिक्रोन’ कोरोना के पिछले डेल्टा वेरिएंट से 6 गुना अधिक खतरनाक है। इसका प्रमाण है कि अपनी शुरुआत के दस दिन के भीतर अमेरिका, इस्राइल, कनाड़ा, ऑस्ट्रेलिया व भारत समेत विश्व के 30 देशों में दस्तक दे चूका है। अभी तक दुनिया भर में इसके करीब 382 मामले दर्ज हुए हैं, जिसमे 182 दक्षिण अफ्रीका से हैं। कोरोना के कारण जिस तरह के हालात विश्व में पिछले 2 वर्षो में जन्मे है। उसे देखते हुए कोई भी देश ऐसी स्थिति में रिस्क लेना पसंद नहीं करेगा। यही कारण है की कई देश एतिहातन अपनी सीमायें बंद कर रहे हैं। और लेवल वन के लॉकडाउन पर विचार कर रहे हैं।
कमजोर वैक्सीनेशन प्रबंधन
‘ओमिक्रोन’ वेरिएंट ने सबसे ज्यादा चिंता अफ्रीकी देशों की बढ़ाई है। जोकि विकास व हेल्थकेयर व्यवस्थओं की दृष्टी से बहुत पिछड़े हैं। कहना गलत नहीं होगा कि यह देश एक बार फिर आमीर देशों की दोहरे मापदंड वाली नीतियों का शिकार हुए हैं। वर्तमान स्थितियों के लिए दुनिया के अमीर व विकसित देशों को भी जिम्मेदार ठहराना गलत नहीं होगा। जिन्होंने संकट के समय इन गरीब देशों के प्रति अपनी नैतिक जिम्मेदारी नही निभाई। चाहे वो कोविड काल में हेल्थकेयर उपकरण उपलब्ध कराने हो या वैक्सीन। विकसित देशों व जिम्मेदार संस्थाओ का रवैया अफ्रीकी देशों के प्रति उदारतापूर्ण नहीं नज़र आया। यही कारण है कि 120 करोड़ की आबादी वाला अफ्रीका वैक्सीनेशन में सबसे पीछे है। अफ्रीका के 30 के अधिक देशों में अभी 10 प्रतिशत भी आबादी को दोनों डोज नहीं लगे है। और कांगो, युगांडा, सूडान, केन्या, इथियोपिया, अंगोला, मलावी आदि कई देशों में तो 10 फीसदी आबादी को पहला डोज तक नहीं लगा है। वहीं एक तरफ अमेरिका अपनी 70 फीसदी आबादी को प्रथम डोज व करीब 60 फीसदी आबादी को पूरी तरह वैक्सीनेट कर चूका है। व वहां 12 प्रतिशत लोगों को बूस्टर डोज तक दिए जा चुके है। चीन अपनी 77 और इजराइल 64 फीसदी आबादी को पूरी तरह वैक्सीनेट कर चूका है। इजराइल में बूस्टर डोज की रफ़्तार सबसे तेज है, जहां 45 प्रतिशत बूस्टर डोज लगवा चुके हैं।
वैश्विक नजरंदाजी का शिकार बने अफ्रीकी देश
विकसित एवं अविकसित देशों के वैक्सीनेशन के आकड़ों में बड़ा अंतर दिखता है। यह संकेत देता है कि संपन्न देश अपनी जिम्मेदारी निभाने में असफल रहे हैं। और जरूरतमंद देशों को वैक्सीन देने की वैश्विक मंचो सी की गई घोषणाएं धरातल पर क्रियान्वित नही हुई। वैक्सीन के सामान वितरण हेतु विश्व स्वास्थ संगठन (डब्लूएचओ) ने कोवैक्स नामक वैश्विक वैक्सीन शेयरिंग सिस्टम बनाया था। जिसका काम संपन्न व गरीब देशों में वैक्सीन के वितरण में असमानता कम करना था। इसके तहत 2021 के आखिर तक 200 करोड़ डोज गरीब देशों को देने थे। पर इसे सितम्बर में घटाकर 140 करोड़ कर दिया गया। साल खत्म होने को है पर अब तक मात्र 58 करोड़ डोज ही जरूरतमंद देशों को मुहैया कराये गए हैं। देखा गया कि कोरोना की दूसरी लहर के समय सभी समृद्ध देशों ने वैक्सीन स्टोर करना शुरू कर दिया। ताकि अपनी आबादी को पहले वैक्सीनेट कर सकें। हालात बयां करते हैं कि डब्लूएचओ भी कई मोर्चों पर निर्णायक भूमिका निभाने में असफल दिखा है। विशेषज्ञो का मत है कि कोरोना जैसी वैश्विक महमारी से निपटने के लिए दुनिया के सभी देशों को संयुक्त प्रयास करने होंगे। वरना अप्रत्याशित तौर पर कहा जा सकता है कि यह नया वेरिएंट भविष्य के लिए एक बड़े ख़तरे का कारण बन सकता है।
✍️ शक्ती प्रताप सिंह
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